Friday, November 30, 2007
खोजने होंगे विरोध के नए तरीके
एम्स के डाक्टरों ने विरोध का जापानी तरीका अपनाते हुए तीन घंटे अतिरिक्त काम करने का फैसला किया है। हमें खुले दिल से इस पहल का स्वागत करना चाहिए। गांधीगीरी के जरिए अंग्रेजों को अपनी सरजमीं से खदेड़ने वाले देश में हिंसा करके विरोध करना ठीक नहीं है। लोकतंत्र में सभी को अपनी राय रखने और असहमति व्यक्त करने का हक है। किसी को इस हक से महरूम करना लोकतंत्र की तौहीनी होगी। लेकिन हमें यह देखना होगा कि लोकतंत्र के तहत अभिव्यक्ति की आजादी कहीं आम लोगों के लिए मुसीबत का सबब तो नहीं बन रही। मसलन विरोध के नाम पर सड़क पर होने वाले प्रदर्शन, जाम व धरने आम आदमी को कितनी तकलीफ पहुंचाते हैं, इसका अंदाजा तो सहजता से लगाया जा सकता है।
नि:संदेह सरकार के जनविरोधी फैसलों व नीतियों की मुखालफत जरूरी है। हम चुपचाप जनता की चुनी हुई सरकार को जनता की अनदेखी नहीं करने दे सकते। लेकिन क्या हम कुछ इस तरह विरोध करते सकते हैं कि हमारी सरकार व प्रशासन विरोधी मुहिम में ज्यादा से ज्यादा लोग शामिल हों। आखिर लोकतंत्र में जनता ही तो असल ताकत है। फिर भला ऐसे विरोध का फायदा, जिससे लोगों को ही तकलीफ होने लगे। खासकर विरोध प्रदर्शन के नाम पर होने वाले सड़क जाम पर आम आदमी की सहानुभूति कभी भी प्रदर्शकारियों के साथ नहीं होती है। उलटे इससे तो उनकी भावनाएं सरकार के बजाए प्रदर्शकारियों के खिलाफ हो जाती हैं। इसी तरह डाक्टरों की हड़ताल की वजह से आम आदमी को होने वाली परेशानी का अंदाजा सहजता से लगाया जा सकता है। ऐसे में एम्स के डाक्टर ओपीडी में मरीजों की अतिरिक्त घंटे सेवा कर अपनी मांग पर आसानी से लोगों की समर्थन जीत सकते हैं।
पिछले दिनों दिल्ली में देश भर से आए हजारों आदिवासी लोगों ने शान्तिपूर्ण प्रदर्शन कर एक मिसाल कायम की। बिना हिंसा व बगैर किसी को नुकसान पहंुंचाए आदिवासी देश की शीर्ष सत्ता तक अपनी बात पहुंचाने में कामयाब रहे। इससे पहले अन्य मसलों पर लोगों ने राजधानी में मोमबत्ती जुलूस निकालकर अपनी राय जाहिर की। देश में मसलों की कमी नहीं है। ज्यादतियों को चुपचाप सहन करना कायरता है। हमें आवाज उठानी ही होगी। लेकिन साथ ही खोजने होंगे विरोध के नए तरीके।
मीना त्रिवेदी
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1 comment:
सिर्फ विरोध करने से कोई फायदा नहीं होगा. विरोध किसी भी तरीके से हो सार्थक होना चाहिए, मुद्दों पर होना चाहिए और घोषित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए होना चाहिए. दुर्भाग्य से हमारे देश में मुद्दे अब मुद्दे नहीं रहे और विरोध का लक्ष्य आमतौर पर राजनीतिक या निजी स्वार्थों की प्राप्ति होता है.
बहरहाल, चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है. पत्रकार होने के नाते आप स्वयं यह बात जानती होंगी कि विशिष्टता का जमाना है. अपने चिट्ठे को किसी खास विषय या मुद्दे पर फोकस करें और फिर उसी पर निरंतर अपने विचार या जानकारियां जो भी देना चाहें दें तो आपको निस्संदेह ज्यादा संतोष मिलेगा. हिंदी ब्लॉग्स में विषयोन्मुखता का अभी काफी अभाव है और इसे आप जैसे नए चिट्ठाकारों को अपना उत्तरदायित्व मानकर इस दिशा में प्रयास करना चाहिए.
टिप्पणी नहीं मिलें तो निराश ना हों, पाठक मिलते रहना चाहिए. पुन: आपका स्वागत और शुभकामनाएं.
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