Tuesday, November 27, 2007
चौराहे की रेड लाइट
सुबह-सबेरे बस्ती से निकलती नन्हों की टोली
अम्मा-बापू से मिलजुल करती हंसी ठिठोली
थोडी देर में चौराहे की रेड लाइट पर जमेगी इनकी महफिल
रस्सी पर करतब दिखाएगी छुटकी
छम छम छम छम नाचेगी कजरी
मटक-मटक कर ढोल बजाएगा माझी
राहगीरों को सलाम बजा कर पैसे मांगेंगे पिन्नी, सांची
ऐसे ही गुजर जाएगा आज का दिन
अम्मा कहती जरा नाच के दिखा
कहता बापू जरा ठुमके लगा
ऐसे ही किसी दिन खेल-खेल में
पहले छुटकी, फिर पिन्नी की होगी विदाई
और एक दिन किसी और बस्ती से निकलेगी
किन्हीं और नन्हों की टोली
चौराहे की रेड लाइट पर सजेगी महफिल
एक नन्हें को आंखों से इशारे दे
छुटकी कहेगी जरा नाच के दिखा
एक नन्हीं को कहेगी पिन्नी जरा ठुमके लगा
थिरक उठेंगे दो जोडी नन्हें पांव
नाचेंगे, गाएंगे और ढोल बजाएंगे
छुटकी का बेटा और पिन्नी की बेटी
और किसी और दिन
किसी और बस्ती से निकलेगी
किन्हीं और नन्हों की टोली
मीना त्रिवेदी
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