Friday, November 23, 2007

और खामोश हो गई उर्मिला बाई ़़़़़़़़़़़़़़

भोपाल के करीब बेतुल जिले में उर्मिला बाई ने डीएम आफिस के सामने जहर खाकर जान दे दी। उर्मिला घूंघट में मुंह छिपाकर सिर्फ घर-गृहस्थी संभालने वाली महिला नहीं थी। वह बडगांव की पंच थी। अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना उसकी फितरत थी। दलित कोटे से जब वह गांव की पंच बनी तो उसके मन में लोगों की मदद करने का जज्बा था। जब उर्मिला को गांव के सरपंच यदुवंशी के भ्रष्टाचार के बारे में पता चला तो वह चुप न रह सकी। उसने सरपंच के खिलाफ शिकायत दर्ज की। यदुवंशी परिवार को गांव की एक दलित महिला का इस तरह मुखालफत करना बेहद नागवार गुजरा। यदुवंशी के बेटे काले ने उर्मिला से बदला लेने के लिए उसका बलात्कार किया। यह वाकया 21 जून, 2004 का है। इस घटना ने मानो उर्मिला की जिन्दगी ही बरबाद करके रख दी। पूरा गांव उस पर ताने कसने लगा। उसने पुलिस में शिकायत की, पर कोई कारZवाई नहीं हुई। आखिरकार निराश होकर वह अपने मायके चली गई। पिछले साल अपने ससुर की मौत के बाद उर्मिला फिर ससुराल लौट आई। लेकिन बलात्कारी काले को उर्मिला का गांव लौटना अच्छा नहीं लगा। वह एक बार फिर उसे सबक सिखाना चाहता था। लिहाजा उसने 25 सितंबर 2006 में उसका दोबारा बलात्कार किया। पहले की तरह इस बार भी पुलिस नििष्क्रय रही। लेकिन अब उर्मिला के सब्र का बांध टूट चुका था। उसने 9 अक्टूबर को ऐलान किया कि अगर एक महीने के भीतर उसके बलात्कारी को नहीं पकड़ा गया तो अपनी जान दे देगी। इसके बावजूद पुलिस ने कुछ नहीं किया। आखिरकार उर्मिला ने 21 नवंबर को डीएम आफिस के सामने जहर खाकर जान दे दी।
उर्मिला की मौत अपने पीछे कई सवाल छोड़ गई है। पहला तो यह है कि बलात्कार जैसी घटनाओं के प्रति आज भी हमारे समाज व पुलिस का रवैया नहीं बदला है। महिला सशक्तिकरण के तमाम दावों के बीच आज भी समाज में बलात्कारी से ज्यादा पीिड़त महिला को शर्मिन्दगी झेलनी पड़ती है। दूसरा यह कि पुलिस पर नए कानूनों या सरकारी योजनाओं का कोई असर नहीं है। ऐसे में अपराधियों से ज्यादा पुलिस पर शिकंजा कसने की जरूरत है। सरकार चाहे लाख नए कानून बना ले, महिलाओं को उनका लाभ तभी मिलेगा जब पुलिस व प्रशासन मिलकर नए प्रावधानों को अमलीजामा पहनाएंगे।

मीना त्रिवेदी

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