Friday, November 23, 2007
परदेस जाने की बेबसी!
हर साल हजारों लोग हसीन सपने लेकर विदेश जाते हैं। कुछ घूमने तो कुछ नौकरी करने। जीवन में कुछ बेहतरीन हासिल करने के लिए परदेस जाने में कोई बुराई नहीं है। खासकर आज की ग्लोबल दुनिया में तो मानो सारा जहां ही अपना है। लक्ष्मी मित्तल और बॉबी जिंदल से हमें अपने सपनों को हकीकत में तब्दील करने की प्रेरणा मिलती है। लेकिन इस सुनहरी उड़ान की सतह पर कईयों की परदेस जाने की बेबसी को हम नजरअंदाज नहीं कर सकते। हाल में आंध्र प्रदेश से खाड़ी देशों में नौकरी करने गए दर्जनों लोग मजबूर होकर खाली हाथ लौट आए। इनमें से कई तो इतने मायूस हुए कि उन्होंने आत्महत्या कर ली। और कुछ अभी भी दुबई में अमानवीय हालात में जीने को मजबूर हैं। ये वे लोग हैं जो गरीबी और बेरोजगारी की बेबसी के चलते विदेश का रुख करने को मजबूर हुए। जाहिर है गरीबों में परदेस जाकर आसमां छूने की ललक नहीं होती। ये तो बस अपने परिवार को भरपेट खाना, रहने के लिए सामान्य सा घर, बच्चों की पढ़ाई, मां-बाप की इलाज जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए साहूकार से कर्ज लेकर खाड़ी के देशों में जाते हैं, जहां वे मजदूरी, घरेलू नौकर, गाड़ी चलाने, दजीZ व होटल में बर्तन धोने जैसे काम करते हैं। वर्क वीजा ना होने की वजह से इनमें से तमाम लोगों का पुलिस व मालिकों द्वारा जमकर उत्पीड़न किया जाता है।
पिछले कुछ महीनों में यहां की सरकारों ने गैर कानूनी रूप से नौकरी करने आए विदेशी नागरिकों पर शिकंजा कसा है। लिहाजा ऐसे कर्मचारियों की हालत और खराब हुई है। मौके का फायदा उठाकर मालिक ऐसे कर्मचारियों को उनका मेहनताना नहीं देते हैं और विरोध करने पर जेल भेजने की धमकी देते हैं। जो लोग अपने गांवों से कर्ज लेकर परदेस गए थे वे भला किस मुंह से वापस आएं। उनके पास तो स्वदेश लौटने तक का किराया नहीं है तो भला वे साहूकार का कर्ज कैसे चुकाएंगे। और उनके परिवार के सपनों का क्या होगा जो यह आशा लगाए बैठे थे कि परिवार का मुखिया विदेश से खुब पैसा कमाकर लौटेगा। आंध्र प्रदेश के तेलंगाना जिले में कुछ लोग हिम्मत कर किसी तरह लौट आए लेकिन साहूकारों ने उनका जीना मुश्किल कर दिया। हाल में यहां खाड़ी से लौटे तीन लोगों ने पेड़ से लटकर अपनी जान दे दी। काश वे परदेस न गए होते। काश उन्हें अपने देश में ही रोजी-रोटी कमाने का मौका मिला होता। खाड़ी से लौटे बाकी लोगों ने वहां रह रहे अन्य भारतीयों का जो हाल बताया वह सुखद नहीं है। ऐसे में यही सवाल उठता है कि आखिर ये लोग विदेश क्यों गए। जाहिर है उन्होंने खुशी-खुशी तो यह रास्ता नहीं चुना होगा। अगर उनके अपने शहर-गांव में रोजगार होता तो वे नौकरी करने बाहर कतई नहीं जाते। कम से कम कर्ज लेकर तो कतई नहीं। लोग बताते हैं कि गांव में सिचाई की व्यवस्था नहीं हैै। खेती बरबाद हो रही है। अशिक्षित व अनपढ़ लोगों के लिए रोजगार नहीं के बराबर हैं। ताज्जुब की बात तो यह है कि जब ये गरीब लोग विजटिंग वीजा लेकर परदेस जा रहे थे, तब हमारे आवर्जन अधिकारियों ने यह जानने की जहमत नहीं उठाई की आखिर जिनके पास खाने को नहीं है वे भला विदेश घूमने क्यों जा रहे हैं। दलालों ने अपनी कमाई के लिए इन गरीबों को बेवकूफ बनाया और उन्हें ऐसे गर्त में धकेला कि उनका जीवन भारी मुश्किलों से घिर गया।
ब्रिटेन में भी इन दिनों भारत से नौकरी के लिए आने वालों पर लगाम कसने की तैयारी हो रही है। ब्रिटेन के आवर्जन मंत्रालय के मुताबिक, बड़ी संख्या में भारतीय गैर कानूनी रूप से वहां नौकरी के लिए जाते हैं। अगले महीने ब्रिटेन का एक प्रतिनिधिमंडल इस मसले पर चर्चा के लिए नई दिल्ली आ रहा है। ऐसे मेें सवाल यही उठता है कि विदेश जाकर नौकरी करने की ऐसी भी भला क्या मजबूरी कि बाहरी मुल्क हमसे तौबा करने लगें। वह दिन कब आएगा जब विदेशी नागरिक भारत में नौकरी करने में फख्र महसूस करेंगे और हम भारतीय पराए देश जाने के बजाय अपनी खुद की धरती पर शान से तरक्की के किस्से गढ़ेंगे।
मीना त्रिवेदी
पिछले कुछ महीनों में यहां की सरकारों ने गैर कानूनी रूप से नौकरी करने आए विदेशी नागरिकों पर शिकंजा कसा है। लिहाजा ऐसे कर्मचारियों की हालत और खराब हुई है। मौके का फायदा उठाकर मालिक ऐसे कर्मचारियों को उनका मेहनताना नहीं देते हैं और विरोध करने पर जेल भेजने की धमकी देते हैं। जो लोग अपने गांवों से कर्ज लेकर परदेस गए थे वे भला किस मुंह से वापस आएं। उनके पास तो स्वदेश लौटने तक का किराया नहीं है तो भला वे साहूकार का कर्ज कैसे चुकाएंगे। और उनके परिवार के सपनों का क्या होगा जो यह आशा लगाए बैठे थे कि परिवार का मुखिया विदेश से खुब पैसा कमाकर लौटेगा। आंध्र प्रदेश के तेलंगाना जिले में कुछ लोग हिम्मत कर किसी तरह लौट आए लेकिन साहूकारों ने उनका जीना मुश्किल कर दिया। हाल में यहां खाड़ी से लौटे तीन लोगों ने पेड़ से लटकर अपनी जान दे दी। काश वे परदेस न गए होते। काश उन्हें अपने देश में ही रोजी-रोटी कमाने का मौका मिला होता। खाड़ी से लौटे बाकी लोगों ने वहां रह रहे अन्य भारतीयों का जो हाल बताया वह सुखद नहीं है। ऐसे में यही सवाल उठता है कि आखिर ये लोग विदेश क्यों गए। जाहिर है उन्होंने खुशी-खुशी तो यह रास्ता नहीं चुना होगा। अगर उनके अपने शहर-गांव में रोजगार होता तो वे नौकरी करने बाहर कतई नहीं जाते। कम से कम कर्ज लेकर तो कतई नहीं। लोग बताते हैं कि गांव में सिचाई की व्यवस्था नहीं हैै। खेती बरबाद हो रही है। अशिक्षित व अनपढ़ लोगों के लिए रोजगार नहीं के बराबर हैं। ताज्जुब की बात तो यह है कि जब ये गरीब लोग विजटिंग वीजा लेकर परदेस जा रहे थे, तब हमारे आवर्जन अधिकारियों ने यह जानने की जहमत नहीं उठाई की आखिर जिनके पास खाने को नहीं है वे भला विदेश घूमने क्यों जा रहे हैं। दलालों ने अपनी कमाई के लिए इन गरीबों को बेवकूफ बनाया और उन्हें ऐसे गर्त में धकेला कि उनका जीवन भारी मुश्किलों से घिर गया।
ब्रिटेन में भी इन दिनों भारत से नौकरी के लिए आने वालों पर लगाम कसने की तैयारी हो रही है। ब्रिटेन के आवर्जन मंत्रालय के मुताबिक, बड़ी संख्या में भारतीय गैर कानूनी रूप से वहां नौकरी के लिए जाते हैं। अगले महीने ब्रिटेन का एक प्रतिनिधिमंडल इस मसले पर चर्चा के लिए नई दिल्ली आ रहा है। ऐसे मेें सवाल यही उठता है कि विदेश जाकर नौकरी करने की ऐसी भी भला क्या मजबूरी कि बाहरी मुल्क हमसे तौबा करने लगें। वह दिन कब आएगा जब विदेशी नागरिक भारत में नौकरी करने में फख्र महसूस करेंगे और हम भारतीय पराए देश जाने के बजाय अपनी खुद की धरती पर शान से तरक्की के किस्से गढ़ेंगे।
मीना त्रिवेदी
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