Thursday, September 27, 2007

हैलो जिंदगी

हैलो जिंदगी कैसी हो तुम
इनदिनो कुछ उदास नजर आती हो
हर छोटी बड़ी बात पर रुठ जाती हो
जितना संवारूं उतनी बिखर जाती हो
जरा मुसीबत क्या आई कि तुम दूर हो गई
बस एक पल में पराई हो गई
याद करो कितना खिलखिलाती थीं तुम
मेरी हर बात पर खूब इतराती थीं तुम
हैलो जिंदगी कैसी हो तुम

शायद मेरी नाकामी से नाराज हो
मेरी वजह से परेशान, हताश हो
देखो, मैंने हार से नहीं मानी है हार
तुम्हें संवारने की कोशिश करती लगातार
अब मान भी जाऒ पहले की तरह संवर जाओ
मुस्कराओ, इठलाओ और खूब इतराओ
अब इतना भी न रुठो तुम
हैलो जिंदगी कैसी हो तुम

चलों फिर करें एक नई शुरुआत
बैठकर करें बातें हजार
कुछ तुम्हारी, कुछ हमारी, जानी अनजानी
मुझे मालूम है तुम थकती, थमती नहीं
कई बार तो मर कर भी जी उठती हो
वादा करो अब न होगी उदास तुम
हैलो जिंदगी कैसी हो तुम


मीना त्रिवेदी

Monday, September 24, 2007

कंपू अब तुम सुधर जाओ

देखों कंपू अब तुम सुधर जाओ
कुछ तो बढिया करके दिखलाओ
अपने पराए सब करते हैं तुम्हारी बुराई
मानो तुममे नहीं कोई अच्छाई
देखों कंपू अब तुम सुधर जाओ

टाइम्स पित्रका ने बताया तुम बड़े प्रदूषित हो
तुमको टैफिक की तहजीब नहीं
सिविक सेंस तो बिल्कुल ही नहीं
तुम बिना बिजली पानी जीते हो
गड्ढों को ही सड़क समझते हो
मैली गंगा के तट पर रहते हो
विषली हवा में जीते मरते हो
देखों कंपू अब तुम सुधर जाओ

अब झगड़ा, मारपीट भी खूब करते हो
जब देखो टीवी पर छाए रहते हो
सनसनी और जुमर् पर सुनती हूं तुम्हारी कहानी
करते हो हत्या, लूटपाट और आगजनी
मन करता है कभी न लौटूं तुम्हारे पास
लेकिन क्या करुं आते हो तुम बहुत याद
क्यों दिया इतना अपनापन, प्यार, दुलार
नहीं भूलते बचपन के दोस्त, मायका और ससुराल
देखों कंपू अब तुम सुधर जाओ



तुम ब्रिटिश जमाने की मिलें भी नहीं संभाल पाए
तभी तो हजारों परिवार सड़क पर आए
नौकरी के लिए हम तुम जुदा हो गए
लेकिन दूर रहकर भी हमें खूब सताते हो
जब तब देखो ख्वाबों में चले आते हो
याद दिलाते हो अपनों की बातें
कालेज, सहेलियां,हंसी और शरारतें
देखों कंपू अब तुम सुधर जाओ



मीना त्रिवेदी